ईसा मसीह परमेश्वर की ओर से लोगों को मार्ग दिखाने के लिए भेजे गए थे। उन्होंने लोगों को जिन बातों की शिक्षा दी, उनमें ‘क्षमा‘ का प्रमुख स्थान है।
डा. श्रीमति शीला लाल का लेख इस विषय पर एक अच्छा लेख है और सभी के लिए उपयोगी है। पेश है उनका लेख :
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मसीही जीवन का एक प्रमुख सिद्धांत है क्षमा। यह हमारे विश्वास की स्वभाविक प्रतिक्रिया बनना चाहिये प्रभपु यीशु ने अपने जीवन से इतना सर्वोतकृष्टि उदाहरण हमारे सामने रखा जब निर्दोष प्रभु यीशु पर दोष लगाकर भीड़ उन्हें अपराधियों की तरह कोड़े मारका पत्थर मारते हुए क्रूस पर चढ़ाने ले गये उन पर थूका थप्पड़ मारे ताने कसे तब भी क्रूस पर चढ़कर लस्वये को ऐसे लोगों के पापों के खातिर बलिदान करते हुए क्रूस की भयानक यातना और पीड़ा सहते हुए सिर पर कांटों का ताज हांथ पेरों में कीले ठुके होने पर भी यीशु ने ऐसे लोगों के लिये अपने स्वर्गीय पिता से प्रार्थना की जिसका वर्णन (लूका 23:35 में है)
हे पिता इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहें है। यह च्यवहार, क्षमा का यह नमूना अपने आप में अनोखा था जिसने यीशु के साथ क्रूस पर टंगे डाकू का जीवन परिवर्तन कर दिया उसने जान लिया कि इस मसीहा क राज्य इस जगत का नहीं क्षणिक नहीं वह तो स्वर्ग का है अनन्त का है और उसका जीवन बदल गया उसने वहां पश्चताप किया उसे उद्धार मिल गया प्रभु का अनुग्रह और क्षमा दान मिल गया। क्योंकि प्रभु यीशु हमारे पापों को पूर्ण रूप से पश्चाताप कर उसे न दुहराने की प्रतिज्ञा करते हैं वे चाहते है जैसे उन्होंने हमारे अपराध क्षमा किये वैसे ही हम भी दूसरों के अपराध क्षमा करें। (इफिसियों 4:32-5:1) में बाइबिल हमें सिखलाती है एक दूसरे के ऊपर कृपाल और करूणामय हो और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किये वैसे हि तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो। इसलिये प्रिय, बालको की नाई परमेश्वर के सदृश्य बनों। बाइबिल हमारी शिक्षा के लिये हमें क्षमा के विभिन्न संदर्भो से प्ररित करती हैं।
(1) क्षमा पहले ईश्वर के द्वार प्राप्त होती हैः- हमें दूसरों को क्षमा करते समय इस बात को निरन्तर स्मरण रखना चाहिये कि इस संसार में तो काई धर्मी नहीं एक भी नहीं। मनुष्य स्वभाव से नित्य निरन्तर पाप करता है गलातियां करता है जब हमारा स्वर्गीय पिता अपने प्रेम व अनुग्रह के कारण हमें निरन्तर क्षमा करता है तो हमें भी दूसरों के साथ ऐसा ही करना चाहिये (देखिये मरकुस 11:25) और जब कभी तुम खड़े हुए प्रार्थन करते हो तो हमारे मन में किसी की ओर से कुछ विरोध हो तो उसे पहले क्षमा करों।
(2) क्षमा की कोई सीमा नहीं होतीः- एक मसीही के लिये क्षमा को सीमाओं में बांधना संभव नहीं न ही यह उचित है क्योंकि कोई भी गलत कार्य या पाप न हो यह उचित है क्योंकि कोई भी गलत कार्य या पाप ईश्वर की दृष्टि में इतना बड़ा या छोटा नहीं कि वह उसे क्षमा न कर सके (देखिये मत्ती 18:21-35 तब पतरस ने आकर उससे कहा, ‘‘प्रभु, मेरे भाई कितनी बार मेरे विरूद्ध अपराध करता रहे कि मैं उसे क्षमा करूं ? क्या सात बार तक ? यीशु ने उससे कहा, ‘‘मैं तुझ से यह नहीं कहता कि सात बार तक ही, वरन् सात बार के सत्तर गुने तक। ’’यानि कोई गिनती की बाता नहीं कोई सीमा नहीं असीमित क्षमादान इसीलिये स्वर्ग के राज्य की तुलना किसी ऐसे राजा से ही जा सकती है जिसने अपने दासों से लेखा लेना चाहा जब वह लेखा लेने लगा तो उसके सामने एक मनुष्य लाया गया जिस पर करोड़ों रूपय का ऋण था। र जब उसके पास ऋण चुकाने को कुछ न था तको उसके स्वामी ने आज्ञा दी कि उसे और उसकी स्त्री, बच्चे, तथा जो कुछ उसके पास है, सब बेचकर ऋण चुका दिया जाए। इस पर दास गिर कर उसे दण्डवत् किया और कहा, ‘ स्वामी र्धर्य रख। मैं सब कुछ चुका दूंगा।’ तब उस दास ने स्वामी ने तरस खा कर उसे छोड़ दिसर और ऋण भी क्षमा कर दिया। परन्तु वह दास बाहर निकला और उसकी भेंट संगी दासों में से उक से हुई जो उसका सौ रूपये का ऋणी था। उसने इसे पकड़ा और इसका गला दबाकर कहा, ‘मेरा ऋण चुका !’ इस पर उसका संगी दास गिरकर अनुनय-विनय करने लगा, ‘धैर्य रख मैं सब चुका दूंगा।’ फिर भी वह न माना और उसे तब तक के लिए बन्दीगृह में डाल दिया जब तक की वह ऋण न चुका दे यह देख कर उसके संगी दस अत्यन्त दुखी हुए और उन्होंने जाकर अपने स्वामी को यह घटना सुनाई। तब उसके स्वामी ने उसे बुलाकर कहा, हे दुष्ट दास ! इसीलिए कि तूने मुझ से विनती की, मैंने तेरा सारा ऋण क्षमा कर दिया था। तो फिर मैंने जिस प्रकार तुझ पर दया की, क्या उसी प्रकार तुझे भी अपने संगी दास पर दया नहीं करनी चाहिये थी ? और उसके स्वामी ने क्रोध से भरकर उसे यातना देने वालों को सौंप दिया कि ऋण चुकाने तक उन्ही के हाथों में रहे। इसी प्रकार यदि तुम में से प्रत्येक अपने भाई को ह्रदय से क्षमा न करे तो मेरा स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे साथ वैसा ही करेगा।’’
(3) क्षमा में चुनाव का स्थान नहीं हैः- आपको मसीही धर्मानुसार इस बात की अनुमति नहीं कि आप कुछ लोगों को क्षमा करे कुछ नहीं या आप कहें आप फलां बात क्षमा कर सकते हैं फलां नहीं आपको यह स्मरण रखना है कि यदि ईश्वर भी आपके साथ ऐसा करे तब आपका क्या होगा (पढि़ये मत्ती 5:43-48)
(1) क्षमा पहले ईश्वर के द्वार प्राप्त होती हैः- हमें दूसरों को क्षमा करते समय इस बात को निरन्तर स्मरण रखना चाहिये कि इस संसार में तो काई धर्मी नहीं एक भी नहीं। मनुष्य स्वभाव से नित्य निरन्तर पाप करता है गलातियां करता है जब हमारा स्वर्गीय पिता अपने प्रेम व अनुग्रह के कारण हमें निरन्तर क्षमा करता है तो हमें भी दूसरों के साथ ऐसा ही करना चाहिये (देखिये मरकुस 11:25) और जब कभी तुम खड़े हुए प्रार्थन करते हो तो हमारे मन में किसी की ओर से कुछ विरोध हो तो उसे पहले क्षमा करों।
(2) क्षमा की कोई सीमा नहीं होतीः- एक मसीही के लिये क्षमा को सीमाओं में बांधना संभव नहीं न ही यह उचित है क्योंकि कोई भी गलत कार्य या पाप न हो यह उचित है क्योंकि कोई भी गलत कार्य या पाप ईश्वर की दृष्टि में इतना बड़ा या छोटा नहीं कि वह उसे क्षमा न कर सके (देखिये मत्ती 18:21-35 तब पतरस ने आकर उससे कहा, ‘‘प्रभु, मेरे भाई कितनी बार मेरे विरूद्ध अपराध करता रहे कि मैं उसे क्षमा करूं ? क्या सात बार तक ? यीशु ने उससे कहा, ‘‘मैं तुझ से यह नहीं कहता कि सात बार तक ही, वरन् सात बार के सत्तर गुने तक। ’’यानि कोई गिनती की बाता नहीं कोई सीमा नहीं असीमित क्षमादान इसीलिये स्वर्ग के राज्य की तुलना किसी ऐसे राजा से ही जा सकती है जिसने अपने दासों से लेखा लेना चाहा जब वह लेखा लेने लगा तो उसके सामने एक मनुष्य लाया गया जिस पर करोड़ों रूपय का ऋण था। र जब उसके पास ऋण चुकाने को कुछ न था तको उसके स्वामी ने आज्ञा दी कि उसे और उसकी स्त्री, बच्चे, तथा जो कुछ उसके पास है, सब बेचकर ऋण चुका दिया जाए। इस पर दास गिर कर उसे दण्डवत् किया और कहा, ‘ स्वामी र्धर्य रख। मैं सब कुछ चुका दूंगा।’ तब उस दास ने स्वामी ने तरस खा कर उसे छोड़ दिसर और ऋण भी क्षमा कर दिया। परन्तु वह दास बाहर निकला और उसकी भेंट संगी दासों में से उक से हुई जो उसका सौ रूपये का ऋणी था। उसने इसे पकड़ा और इसका गला दबाकर कहा, ‘मेरा ऋण चुका !’ इस पर उसका संगी दास गिरकर अनुनय-विनय करने लगा, ‘धैर्य रख मैं सब चुका दूंगा।’ फिर भी वह न माना और उसे तब तक के लिए बन्दीगृह में डाल दिया जब तक की वह ऋण न चुका दे यह देख कर उसके संगी दस अत्यन्त दुखी हुए और उन्होंने जाकर अपने स्वामी को यह घटना सुनाई। तब उसके स्वामी ने उसे बुलाकर कहा, हे दुष्ट दास ! इसीलिए कि तूने मुझ से विनती की, मैंने तेरा सारा ऋण क्षमा कर दिया था। तो फिर मैंने जिस प्रकार तुझ पर दया की, क्या उसी प्रकार तुझे भी अपने संगी दास पर दया नहीं करनी चाहिये थी ? और उसके स्वामी ने क्रोध से भरकर उसे यातना देने वालों को सौंप दिया कि ऋण चुकाने तक उन्ही के हाथों में रहे। इसी प्रकार यदि तुम में से प्रत्येक अपने भाई को ह्रदय से क्षमा न करे तो मेरा स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे साथ वैसा ही करेगा।’’
(3) क्षमा में चुनाव का स्थान नहीं हैः- आपको मसीही धर्मानुसार इस बात की अनुमति नहीं कि आप कुछ लोगों को क्षमा करे कुछ नहीं या आप कहें आप फलां बात क्षमा कर सकते हैं फलां नहीं आपको यह स्मरण रखना है कि यदि ईश्वर भी आपके साथ ऐसा करे तब आपका क्या होगा (पढि़ये मत्ती 5:43-48)
तुम यह सुन चुके हो कि कह गया कि अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना और बैरी से बैर परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं कि अपने बैरियों से प्रेम रखों और अपने सताने वालों के लिए प्रार्थना करो जिससे तुम अपने स्वर्गीय पिता की संतान ठहरोगे क्योंकि वह भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है और धमिर्यो और अधर्मियों दोनों पर मेह बरसाता है।
(4) क्षमा हमारे द्वारा खड़ी की गयी दीवारे तोड़कर हमें स्वतंत्र करता हैः- जब आप क्षमा का चुनाव करते है या पश्चाताप कर ईश्वर से क्षमा प्राप्त करते है तब आप अपने हृदय और अन्तरात्मा में आपके द्वारा उठाई गई अलगाव की दीवारों को गिराते हैं आप वास्तव में स्वतंत्र होते हैं और आपका संबंध बेहतर होता है दृढ़ होता है, विकसित और स्वायी होता हैं। (कुलुस्सियों 3:12-15)
(4) क्षमा हमारे द्वारा खड़ी की गयी दीवारे तोड़कर हमें स्वतंत्र करता हैः- जब आप क्षमा का चुनाव करते है या पश्चाताप कर ईश्वर से क्षमा प्राप्त करते है तब आप अपने हृदय और अन्तरात्मा में आपके द्वारा उठाई गई अलगाव की दीवारों को गिराते हैं आप वास्तव में स्वतंत्र होते हैं और आपका संबंध बेहतर होता है दृढ़ होता है, विकसित और स्वायी होता हैं। (कुलुस्सियों 3:12-15)
इसीलिए परमेश्वर के चुने हुओं की नाई जो पवित्र और प्रिय है बड़ी करूणा और भलाई और दीनता और नम्रता और सहनशीलता धारण करो और यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो तो एक दूसरे की सह लो और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किये वैसे ही तुम भी करो।